नवरात्र पूजा विधि (Navratra Puja Vidhi)
नवरात्र के नौ दिन देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्र व्रत (Navratri Puja Vidhi) की शुरूआत प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना से की जाती है। नवरात्र के नौ दिन प्रात:, मध्याह्न और संध्या के समय भगवती दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। श्रद्धानुसार अष्टमी या नवमी के दिन हवन और कुमारी पूजा कर भगवती को प्रसन्न करना चाहिए।
चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri)
चैत्र महीने में मनाई जाने वाली नवरात्रि 18 मार्च से 26 मार्च तक मनाई जाएगी। सुबह 07 बजकर 29 मिनट से लेकर 08 बजकर 27 मिनट तक घटस्थापना का शुभ मुहूर्त है।
शारदीय नवरात्र (Shardiya Navratri)
इस बार शारदीय नवरात्र 10 अक्टूबर 2018 से शुरु होंगे। नवरात्र के प्रथम दिन कलश स्थापना कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सुबह 06:22 मिनट से लेकर 07:25 तक का समय कलश स्थापना के लिए शुभ है। नवरात्र व्रत की शुरुआत प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना से की जाती है।
नवरात्र के 10 दिन प्रात:, मध्याह्न और संध्या के समय भगवती दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। श्रद्धानुसार अष्टमी या नवमी के दिन हवन और कुमारी पूजा कर भगवती को प्रसन्न करना चाहिए।
नवरात्र में हवन और कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए। नारदपुराण के अनुसार हवन और कन्या पूजन के बिना नवरात्र की पूजा अधूरी मानी जाती है। साथ ही नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा के लिए लाल रंग के फूलों व रंग का अत्यधिक प्रयोग करना चाहिए। नवरात्र में "श्री दुर्गा सप्तशती" का पाठ करने का प्रयास करना चाहिए।
परंपरागत रूप से हिंदू धर्म में, शराब और गैर-शाकाहारी भोजन का उपभोग अशुभ और अपवित्र माना जाता है लेकिन इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। इन उपवासों के दौरान लोग मांस, अनाज, शराब, प्याज, लहसुन आदि खाने से बचते हैं। आयुर्वेदिक परिप्रेक्ष्य से, ये खाद्य पदार्थ नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करते हैं और अवशोषित करते हैं। इसके अलावा, मौसमी बदलाव के दौरान ऐसे पदार्थों से बचा जाना चाहिए क्योंकि हमारे शरीर ऐसे समय के दौरान कम प्रतिरक्षा रखते हैं।
नवरात्री के दौरान घर पर बनाये जाने वाले व्यंजन
साबूदाना खिचड़ी: साबूदाना में स्टार्च या कार्बोहाइड्रेट होता है जो उपवास के दौरान आपको आवश्यक ऊर्जा देता है। साबूदाना की खिचड़ी साबूदाना, मूंगफली और हल्के मसालों के साथ बनाया गया एक हल्का डिश।
कुट्टू का डोसा: इन नवरात्रों में सामान्य कुट्टू की पूड़ियो के अलावा कुछ और नया बनायें। कुट्टू का डोसा एक कुरकुरा डोसा हे जिसमे आलू भरा हुआ है।
सिंगाड़े के आटे का सामोसा: आपकी चाय के साथ खाने वाला पसंदीदा पकवान। इसे बनाने के लिए पानी में शहतीज का आटा, सेंधा नमक और मसालेदार चिरोंजी का इस्तेमाल करें।
आलू की कढ़ी: हलकी और स्वादिष्ट कड़ी।
लो फैट वाली मखाना खीर: डेसर्ट ज़िन्दगी में उत्साह लाते हैं। यह खीर मखाना और नट्स के साथ बनाई गयी है। वज़न बढने की चिंता को भुला कर इस खीर का मज़ा लें।
केले अखरोट की लस्सी: इस पौष्टिक पेय के साथ अपने आप को चार्ज करें। यह लस्सी दही, केला, शहद और अखरोट को मिला कर बनाई गयी है।
व्रतवाले चावल का ढोकला: एक ताजा नुस्खा है जो आपको सामान्य तले हुए पकोड़े और पुरी के अलावा भी विकल्प देता है।
कबाब-ए-केला: उपवास अब उबाऊ नहीं होगा मसालेदार केले कबाब जो पूरी तरह से आपके मुंह में पिघल जाते हैं और आपकी आत्मा को खुश करते हैं।
सोंठ की चटनी: अपने नियमित पकोड़े या भाज्जी के लिए एक सही पूरक है और यहां तक कि आपके व्रत-अनुकूल नाश्ते के साथ भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।
नवरात्री के व्रत के समय क्या ना खायें
फलों के रस: अब, क्योंकि हम उपवास करते हैं, इसका अर्थ यह नहीं है कि हम जितना मन चाहे उतना उसे पियें। यहाँ तक की व्रत वाले दिन ताज़ा फलों का रस भी ज्यादा नहीं पीना चाहिए इसका कारण यह है की फलों के रस में बहुत अधिक मात्र में चीनी होती है और यही नहीं फलों के रस में फायदेमंद फाइबर, और एंटी-ऑक्सीडेंट की कमी भी होती है। न सिर्फ फलों के रस मधुमेह के जोखिम को बढ़ाते हैं, यह बच्चों में मोटापे की समस्या को भी जन्म देते है। यह रस खून में शुगर की मात्रा को भी बढ़ाते है। इसके अलावा, ये रस आपका पेट भर नहीं पाते क्यूंकि इनमे फाइबर की कमी होती है। तो, अच्छा यही है की आप पुरे फल को साबुत खाएं, इसके इलावा आप हरी सब्जी के रस को पी सकते हैं क्योंकि उनमे चीनी की मात्रा कम होती है और आपके रक्त शर्करा के स्तर को भी परेशान नहीं करते।
फ्राइड खाने को छोड़े: तले हुए नाश्ता आपको एक दिन के लिए आवश्यक सभी कैलोरी दे सकता है। लेकिन उपवास का उद्देश्य शरीर के अन्दर की सारी गन्दगी को साफ़ करना होता है न की गन्दगी बढाना। जिस हाइड्रोजनीकृत तेल में इन स्नैक्स को बनाया जाता है उससे कई बीमारियाँ जैसे दमा, धमनियों में रूकावट और मधुमेह हो सकती है । इसलिए, व्रत वाले दिन तली हुई पूरियों के स्थान पर रोटी आलू या सीताफल की सब्जी के साथ खाएं।
चीनी शरीर के लिए हानिकारक है: चीनी चाहे सफेद हो या भूरे रंग की उसमे पोषण की मात्रा शुन्य है। चीनी न सिर्फ आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर करती है बल्कि यह आपके पेट के स्वस्थ्य को भी ख़राब करती है। इन नवरात्रों में चीनी का त्याग करें और आप निश्चित रूप से उत्साहित और स्वस्थ महसूस करेंगे। गुड़ या नारियल के चीनी का इस्तेमाल करके अपनी साबूदाने की खीर को ज़ायकेदार बनाये। पारंपरिक गुड़ में सेलेनियम, जिंक, और लोहा होता है और यह शरीर से गंदे पदार्थों को बाहर निकालता है। साथ ही, आप प्राकृतिक रूप से मीठे फलों को खा सकते है।
प्रोसेस्ड और पैकेज्ड फ़ूड: नवरात्रि के दौरान सुपर बाजारों में व्रत के नमकीन और तरह-तरह के जंक फ़ूड उपलब्ध होते हैं। हलाकि यह दावा किया जाता है की यह स्वस्थ के लिए अच्छे हैं, लेकिन यीह प्रचार सही नहीं है। पैकेज्ड खाने में सोडियम, चीनी और हानिकारक तेलों का इस्तेमाल होता है। यही नहीं जिन रसायनों से ऐसे खाने के इस्तेमाल की उम्र बढाई जाती है वह सेहत के लिए हानिकारक होते है। आज कल लगभग 3000 से अधिक खाद्य योजको और रंगों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
कंजक पूजा परिचय:
कंजक पूजा नवरात्रि के अष्टमी या नौवीं (आठवीं या नौवें दिन) पर की जाता है। देवी को आभार देने का यह एक और तरीका है। कुमारी पूजा या कंजक को देवी महाकाली द्वारा दानव कलासुरा के वध के उपलक्ष में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि कलासुरा ने स्वर्ग और पृथ्वी दोनों को परेशान करना शुरू कर दिया था और कोई भी उसे पराजित नहीं कर पा रहा था। कलासुरा को रोकने के प्रयास में, अन्य देवताओं ने देवी महाकाली से संपर्क किया था जिन्होंने देवी दुर्गा के रूप में पुनर्जन्म लिया था। देवी ने एक छोटी लड़की का रूप ले लिया और कलासुरा से संपर्क किया।
कलासुरा ने जब यह देखा की एक छोटी सी लड़की उसको चुनोती दे रही है तो वह लापरवाह हो गया और उसने यह सोचा की वह बड़ी असानी से उस कन्या को पराजित कर देगा। उस समय पर, देवी महाकाली ने अपनी तलवार को निकाला और उसे मार दिया। एक अन्य कथा से पता चलता है कि एक युवा लड़की (कन्या / कुंवारी) की पूजा की जाती है क्योंकि वह उसका सबसे शुभ स्वरूप है बाद में, वह एक पत्नी और माता (पार्वती, लक्ष्मी) की भूमिका, अपने बच्चों (सरस्वती) की शिक्षक की भूमिका और सभी बाधाओं (दुर्गा) के विनाश की भूमिका ग्रहण कर लेती है।
दुर्गा सप्त्शालोकी
दुर्गा सप्त्शालोकी माँ दुर्गा के 7 रूपों का परिचायक है जैसे की माँ महाकाली माँ सरस्वती माँ महालक्ष्मी और माँ जगदम्बा। दुर्गा सप्त्शालोकी माँ दुर्गा की सभी दानवों पर विजय को दर्शाता है। यह मान्यता है की माँ दुर्गा ने दुर्गा सप्त्शालोकी का पाठ भगवान शिव को सुनाया था। एक बार भगवान शिव ने माँ दुर्गा से पूछा की उनके भक्त ऐसा क्या करें की वह अपने जीवन में हमेशा सफलता पायें। माँ दुर्गा ने सुखमय शांत और सफल जीवन जीने के लिए दुर्गा सप्त्शालोकी के बारे में बताया। दुर्गा सप्त्शालोकी पाठ को चंडी पाठ की जगह भी पड़ा जा सकता है।
दुर्गा सप्त्शलोकी पाठ
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमहामन्त्रस्य
नारायण ऋषिः । अनुष्टुपादीनि छन्दांसि ।
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः ।
श्री जगदम्बाप्रीत्यर्थ पाठे विनियोगः ॥
नारायण ऋषिः । अनुष्टुपादीनि छन्दांसि ।
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः ।
श्री जगदम्बाप्रीत्यर्थ पाठे विनियोगः ॥
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥१॥
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥१॥
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द चित्ता ॥२॥
दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द चित्ता ॥२॥
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमो: स्तुते ॥३॥
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमो: स्तुते ॥३॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो: स्तुते ॥४॥
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो: स्तुते ॥४॥
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवी नमो: स्तुते ॥५॥
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवी नमो: स्तुते ॥५॥
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥६॥
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥६॥
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम् ॥७॥
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम् ॥७॥
देवी कवच
श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम् ।
पठित्वा पाठयित्वा च नरो मुच्येत संकटात् ॥ १॥
अज्ञात्वा कवचं देवि दुर्गामंत्रं च यो जपेत् ।
स नाप्नोति फलं तस्य परं च नरकं व्रजेत् ॥ २॥
उमादेवी शिरः पातु ललाटे शूलधारिणी ।
चक्षुषी खेचरी पातु कर्णौ चत्वरवासिनी ॥ ३॥
सुगंधा नासिके पातु वदनं सर्वधारिणी ।
जिह्वां च चंडिकादेवी ग्रीवां सौभद्रिका तथा ॥ ४॥
अशोकवासिनी चेतो द्वौ बाहू वज्रधारिणी ।
हृदयं ललितादेवी उदरं सिंहवाहिनी ॥ ५॥
कटिं भगवती देवी द्वावूरू विंध्यवासिनी ।
महाबला च जंघे द्वे पादौ भूतलवासिनी ॥ ६॥
एवं स्थितासि देवि त्वं त्रैलोक्ये रक्षणात्मिका ।
रक्ष मां सर्वगात्रेषु दुर्गे देवि नमोस्तुते ॥ ७॥
॥ इति दुर्गाकवचं संपूर्णम् ॥
देवी अपराध क्षमा स्त्रोत:
॥ अथ देव्यपराधक्षमापणस्तोत्रम् ॥
न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः ।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥ १॥
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् ।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥ २॥
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः ।
मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥ ३॥
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥ ४॥
परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया
मया पञ्चा शीतेरधिकमपनीते तु वयसि ।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् ॥ ५॥
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः ।
तवापर्णे कर्णे विशति मनु वर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जननीयं जपविधौ ॥ ६॥
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥ ७॥
न मोक्षस्याकांक्षा भवविभववाञ्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः ।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः ॥ ८॥
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः ।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥ ९॥
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि ।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥ १०॥
जगदम्ब विचित्र मत्र किं
परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि ।
अपराधपरम्परापरं
न हि माता समुपेक्षते सुतम् ॥ ११॥
मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि ।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु ॥ १२॥ ॐ ॥
सिद्ध कुंजिका स्त्रोतम
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥
॥अथ मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
॥इति मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
॥इति मन्त्रः॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे॥२॥
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते॥३॥
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥४॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥५॥
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥५॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥६॥
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥६॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥७॥
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥७॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥८॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥
॥ॐ तत्सत्॥
श्रीदुर्गामानस-पूजा
उद्यच्चन्दनकुङ्कुमारुणपयोधाराभिराप्लावितां
नानानर्घ्यमणिप्रवालघटितां दत्तां गृहाणाम्बिके।
आमृष्टां सुरसुन्दरीभिरभितो हस्ताम्बुजैर्भक्तितो
मातः सुन्दरि भक्तकल्पलतिके श्रीपादुकामादरात्॥१॥
नानानर्घ्यमणिप्रवालघटितां दत्तां गृहाणाम्बिके।
आमृष्टां सुरसुन्दरीभिरभितो हस्ताम्बुजैर्भक्तितो
मातः सुन्दरि भक्तकल्पलतिके श्रीपादुकामादरात्॥१॥
देवेन्द्रादिभिरर्चितं सुरगणैरादाय सिंहासनं
चञ्चत्काञ्चनसंचयाभिरचितं चारुप्रभाभास्वरम्।
एतच्चम्पककेतकीपरिमलं तैलं महानिर्मलं
गन्धोद्वर्तनमादरेण तरुणीदत्तं गृहाणाम्बिके॥२॥
चञ्चत्काञ्चनसंचयाभिरचितं चारुप्रभाभास्वरम्।
एतच्चम्पककेतकीपरिमलं तैलं महानिर्मलं
गन्धोद्वर्तनमादरेण तरुणीदत्तं गृहाणाम्बिके॥२॥
पश्चाद्देवि गृहाण शम्भुगृहिणि श्रीसुन्दरि प्रायशो
गन्धद्रव्यसमूहनिर्भरतरं धात्रीफलं निर्मलम्।
तत्केशान् परिशोध्य कङ्कतिकया मन्दाकिनीस्रोतसि
स्नात्वा प्रोज्ज्वलगन्धकं भवतु हे श्रीसुन्दरि त्वन्मुदे॥३॥
गन्धद्रव्यसमूहनिर्भरतरं धात्रीफलं निर्मलम्।
तत्केशान् परिशोध्य कङ्कतिकया मन्दाकिनीस्रोतसि
स्नात्वा प्रोज्ज्वलगन्धकं भवतु हे श्रीसुन्दरि त्वन्मुदे॥३॥
सुराधिपतिकामिनीकरसरोजनालीधृतां
सचन्दनसकुङ्कुमागुरुभरेण विभ्राजिताम्।
महापरिमलोज्ज्वलां सरसशुद्धकस्तूरिकां
गृहाण वरदायिनि त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे॥४॥
सचन्दनसकुङ्कुमागुरुभरेण विभ्राजिताम्।
महापरिमलोज्ज्वलां सरसशुद्धकस्तूरिकां
गृहाण वरदायिनि त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे॥४॥
गन्धर्वामरकिन्नरप्रियतमासंतानहस्ताम्बुज-
प्रस्तारैर्ध्रियमाणमुत्तमतरं काश्मीरजापिञ्जरम्।
मातर्भास्वरभानुमण्डललसत्कान्तिप्रदानोज्ज्वलं
चैतन्निर्मलमातनोतु वसनं श्रीसुन्दरि त्वन्मुदम्॥५॥
प्रस्तारैर्ध्रियमाणमुत्तमतरं काश्मीरजापिञ्जरम्।
मातर्भास्वरभानुमण्डललसत्कान्तिप्रदानोज्ज्वलं
चैतन्निर्मलमातनोतु वसनं श्रीसुन्दरि त्वन्मुदम्॥५॥
स्वर्णाकल्पितकुण्डले श्रुतियुगे हस्ताम्बुजे मुद्रिका
मध्ये सारसना नितम्बफलके मञ्जीरमङ्घ्रिद्वये।
हारो वक्षसि कङ्कणौ क्वणरणत्कारौ करद्वन्द्वके
विन्यस्तं मुकुटं शिरस्यनुदिनं दत्तोन्मदं स्तूयताम्॥६॥
मध्ये सारसना नितम्बफलके मञ्जीरमङ्घ्रिद्वये।
हारो वक्षसि कङ्कणौ क्वणरणत्कारौ करद्वन्द्वके
विन्यस्तं मुकुटं शिरस्यनुदिनं दत्तोन्मदं स्तूयताम्॥६॥
ग्रीवायां धृतकान्तिकान्तपटलं ग्रैवेयकं सुन्दरं
सिन्दूरं विलसल्ललाटफलके सौन्दर्यमुद्राधरम्।
राजत्कज्जलमुज्ज्वलोत्पलदलश्रीमोचने लोचने
तद्दिव्यौषधिनिर्मितं रचयतु श्रीशाम्भवि श्रीप्रदे॥७॥
सिन्दूरं विलसल्ललाटफलके सौन्दर्यमुद्राधरम्।
राजत्कज्जलमुज्ज्वलोत्पलदलश्रीमोचने लोचने
तद्दिव्यौषधिनिर्मितं रचयतु श्रीशाम्भवि श्रीप्रदे॥७॥
अमन्दतरमन्दरोन्मथितदुग्धसिन्धूद्भवं
निशाकरकरोपमं त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे।
गृहाण मुखमीक्षतुं मुकुरबिम्बमाविद्रुमै-
र्विनिर्मितमघच्छिदे रतिकराम्बुजस्थायिनम्॥८॥
निशाकरकरोपमं त्रिपुरसुन्दरि श्रीप्रदे।
गृहाण मुखमीक्षतुं मुकुरबिम्बमाविद्रुमै-
र्विनिर्मितमघच्छिदे रतिकराम्बुजस्थायिनम्॥८॥
कस्तूरीद्रवचन्दनागुरुसुधाधाराभिराप्लावितं
चञ्चच्चम्पकपाटलादिसुरभिद्रव्यैः सुगन्धीकृतम्।
देवस्त्रीगणमस्तकस्थितमहारत्नादिकुम्भव्रजै-
रम्भःशाम्भवि संभ्रमेण विमलं दत्तं गृहाणाम्बिके॥९॥
चञ्चच्चम्पकपाटलादिसुरभिद्रव्यैः सुगन्धीकृतम्।
देवस्त्रीगणमस्तकस्थितमहारत्नादिकुम्भव्रजै-
रम्भःशाम्भवि संभ्रमेण विमलं दत्तं गृहाणाम्बिके॥९॥
कह्लारोत्पलनागकेसरसरोजाख्यावलीमालती-
मल्लीकैरवकेतकादिकुसुमै रक्ताश्वमारादिभिः।
पुष्पैर्माल्यभरेण वै सुरभिणा नानारसस्रोतसा
ताम्राम्भोजनिवासिनीं भगवतीं श्रीचण्डिकां पूजये॥१०॥
मल्लीकैरवकेतकादिकुसुमै रक्ताश्वमारादिभिः।
पुष्पैर्माल्यभरेण वै सुरभिणा नानारसस्रोतसा
ताम्राम्भोजनिवासिनीं भगवतीं श्रीचण्डिकां पूजये॥१०॥
मांसीगुग्गुलचन्दनागुरुरजः कर्पूरशैलेयजै-
र्माध्वीकैः सह कुङ्कुमैः सुरचितैः सर्पिर्भिरामिश्रितैः।
सौरभ्यस्थितिमन्दिरे मणिमये पात्रे भवेत् प्रीतये
धूपोऽयं सुरकामिनीविरचितः श्रीचण्डिके त्वन्मुदे॥११॥
र्माध्वीकैः सह कुङ्कुमैः सुरचितैः सर्पिर्भिरामिश्रितैः।
सौरभ्यस्थितिमन्दिरे मणिमये पात्रे भवेत् प्रीतये
धूपोऽयं सुरकामिनीविरचितः श्रीचण्डिके त्वन्मुदे॥११॥
घृतद्रवपरिस्फुरद्रुचिररत्नयष्ट्यान्वितो
महातिमिरनाशनः सुरनितम्बिनीनिर्मितः।
सुवर्णचषकस्थितः सघनसारवर्त्यान्वित-
स्तव त्रिपुरसुन्दरि स्फुरति देवि दीपो मुदे॥१२॥
महातिमिरनाशनः सुरनितम्बिनीनिर्मितः।
सुवर्णचषकस्थितः सघनसारवर्त्यान्वित-
स्तव त्रिपुरसुन्दरि स्फुरति देवि दीपो मुदे॥१२॥
जातीसौरभनिर्भरं रुचिकरं शाल्योदनं निर्मलं
युक्तं हिङ्गुमरीचजीरसुरभिद्रव्यान्वितैर्व्यञ्जनैः।
पक्वान्नेन सपायसेन मधुना दध्याज्यसम्मिश्रितं
नैवेद्यं सुरकामिनीविरचितं श्रीचण्डिके त्वन्मुदे॥१३॥
युक्तं हिङ्गुमरीचजीरसुरभिद्रव्यान्वितैर्व्यञ्जनैः।
पक्वान्नेन सपायसेन मधुना दध्याज्यसम्मिश्रितं
नैवेद्यं सुरकामिनीविरचितं श्रीचण्डिके त्वन्मुदे॥१३॥
लवङ्गकलिकोज्ज्वलं बहुलनागवल्लीदलं
सजातिफलकोमलं सघनसारपूगीफलम्।
सुधामधुरिमाकुलं रुचिररत्नपात्रस्थितं
गृहाण मुखपङ्कजे स्फुरितमम्ब ताम्बूलकम्॥१४॥
सजातिफलकोमलं सघनसारपूगीफलम्।
सुधामधुरिमाकुलं रुचिररत्नपात्रस्थितं
गृहाण मुखपङ्कजे स्फुरितमम्ब ताम्बूलकम्॥१४॥
शरत्प्रभवचन्द्रमः स्फुरितचन्द्रिकासुन्दरं
गलत्सुरतरङ्गिणीललितमौक्तिकाडम्बरम्।
गृहाण नवकाञ्चनप्रभवदण्डखण्डोज्ज्वलं
महात्रिपुरसुन्दरि प्रकटमातपत्रं महत्॥१५॥
गलत्सुरतरङ्गिणीललितमौक्तिकाडम्बरम्।
गृहाण नवकाञ्चनप्रभवदण्डखण्डोज्ज्वलं
महात्रिपुरसुन्दरि प्रकटमातपत्रं महत्॥१५॥
मातस्त्वन्मुदमातनोतु सुभगस्त्रीभिः सदाऽऽन्दोलितं
शुभ्रं चामरमिन्दुकुन्दसदृशं प्रस्वेददुःखापहम्।
सद्योऽगस्त्यवसिष्ठनारदशुकव्यासादिवाल्मीकिभिः
स्वे चित्ते क्रियमाण एव कुरुतां शर्माणि वेदध्वनिः॥१६॥
शुभ्रं चामरमिन्दुकुन्दसदृशं प्रस्वेददुःखापहम्।
सद्योऽगस्त्यवसिष्ठनारदशुकव्यासादिवाल्मीकिभिः
स्वे चित्ते क्रियमाण एव कुरुतां शर्माणि वेदध्वनिः॥१६॥
स्वर्गाङ्गणे वेणुमृदङ्गशङ्खभेरीनिनादैरुपगीयमाना।
कोलाहलैराकलिता तवास्तु विद्याधरीनृत्यकला सुखाय॥१७॥
कोलाहलैराकलिता तवास्तु विद्याधरीनृत्यकला सुखाय॥१७॥
देवि भक्तिरसभावितवृत्ते प्रीयतां यदि कुतोऽपि लभ्यते।
तत्र लौल्यमपि सत्फलमेकं जन्मकोटिभिरपीह न लभ्यम्॥१८॥
तत्र लौल्यमपि सत्फलमेकं जन्मकोटिभिरपीह न लभ्यम्॥१८॥
एतैः षोडशभिः पद्यैरुपचारोपकल्पितैः।
यः परां देवतां स्तौति स तेषां फलमाप्नुयात्॥१९॥
यः परां देवतां स्तौति स तेषां फलमाप्नुयात्॥१९॥
इति दुर्गातन्त्रे दुर्गामानसपूजा समाप्ता।
दुर्गा क्षमा-प्रार्थना
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥१॥
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥१॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि॥२॥
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि॥२॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥३॥
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥३॥
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत्।
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः॥४॥
यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः॥४॥
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके।
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरू॥५॥
इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरू॥५॥
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥६॥
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥६॥
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि॥७॥
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि॥७॥
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गुहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि॥८॥
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि॥८॥
श्रीदुर्गार्पणमस्तु।
कंजक पूजा विधि:
परंपरा कहती हैं कि घर की महिला 9 लड़कियों का स्वागत उनके पैरों को धो कर और उनकी कलायिओं पर मोली या लाल धागा बांध कर करती है। इन लड़कियां को एक पंक्ति में बैठाया जाता है और उपहारों के साथ हलवा, पूरी और छोले (जिसे 'भोग' भी कहा जाता है) दिए जाते है। इन छोटी लड़कियों को देवी दुर्गा के अवतार के रूप में देखा जाता है।कंजक पूजा आरम्भ करने से पहले कुछ वस्तुओं का होना आवश्यक है। उन वस्तुओं की सूचि इस प्रकार है: कलश (पिचर), आम के पत्ते, नारियल, रौली (कुमकुम), हल्दी, लाल पवित्र धागा, चावल, पान के पत्ते, सुपारी, लौंग, इलायची, फूल, बेल पत्ते, मिठाई और दीपक। कलश को ऊपर तक पानी से भरें। कलश के मुंह पर आम के पत्ते को रखें। कलश की गर्दन पर पवित्र धागा बांधें कलश के पास देवी दुर्गा की मूर्ति को रखें और उनकी हल्दी, कुमकुम, फूल, चावल, बेल पत्तियों आदि से पूजा करें।
लड़कियों के आने के बाद, उनके पैरों को धोने के लिए पानी को तैयार रखें। लड़कियों के पेरों को पानी से धोएं। कंजकों की उसी तरह से पूजा करें जिस तरह से आपने देवी दुर्गा की मूर्ति की पूजा की है। हल्दी, कुमकुम, चावल आदि को कंजकों पर लगायें। लड़कियों के सामने एक दीपक और धूप जलाएं। कंजकों को दियी जाने वाला भोजन शाकाहारी होना चाहिए और उसे घी पकाना चाहिए। आम तौर पर कंजकों को पूरी, काला चना, आलू की सबजी और हलवा खिलाया जाता है। लड़कियों को खिलाने के बाद, उन्हें उपहार दें उपहार में एक चुनरी, चूड़ी, कुमकुम, हल्दी, मिठाई और पैसे शामिल होना चाहिए।
नवरात्री समापन
नौ दिनों के पूजा खत्म हो जाने के बाद, दसवीं दिन पर दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। दसवें दिन, नहा-धो कर पूजा स्थान पर बैठें। माँ दुर्गा की मूर्ति को चोव्की से उठा कर उस स्थान पर रखें जहाँ पर वह स्थाई रूप से रखी जाती है। चोव्की पर रखे चढ़ावे को इकठा कर के उसे प्रसाद के रूप में लोगों में बाँट दें। चावल के दानो को पक्षियों में बाँट दें। कलश में रखे गंगा जल को अपने परिवार के सदस्यों और पूरे घर में छिड़क दें।
सिक्कों को बाहर निकालें और उन्हें अपने दूसरे पैसे के साथ रखें। आम तौर पर मिट्टी के बर्तन में जौ के विकास पर निगरानी राखी जाती है। जौ के बीज को शकमभारी देवी माता के सम्मान में लगाया जाता है (जो दुर्गा पाठ के 11 वें अध्याय में वर्णित है और जो माँ दुर्गा की ही एक रूप हैं)। माँ शकमभारी देवी पोषण की माता हैं। यदि जौ के बीज बढ़ते हैं और प्रचुर मात्रा में ताजे हरे रंग में उगते हैं, तो यह एक निश्चित संकेत है कि आपके परिवार को समृद्धि और खुशी का आशीर्वाद मिलेगा। कुछ अंकुरित जौ माता दुर्गा को अर्पण करें।
श्रीमद्देवी भागवत के अनुसार नवरात्र पूजा (Navratri Puja Vidhi in Hindi) से जुड़ी कुछ विशेष बातें निम्न हैं:
* यदि श्रद्धालु नवरात्र में प्रतिदिन पूजा ना कर सके तो अष्टमी के दिन विशेष पूजा कर वह सभी फल प्राप्त कर सकता है।
* अगर श्रद्धालु पूरे नवरात्र में उपवास ना कर सके तो तीन दिन उपवास करने पर भी वह सभी फल प्राप्त कर लेता है। कई लोग नवरात्र के प्रथम दिन और अष्टमी एवम नवमी का व्रत करते हैं। शास्त्रों के अनुसार यह भी मान्य है।
* नवरात्र व्रत देवी (Navratri Puja Vidhi) पूजन, हवन, कुमारी पूजन और ब्राह्मण भोजन से ही पूरा होता है।
* अगर श्रद्धालु पूरे नवरात्र में उपवास ना कर सके तो तीन दिन उपवास करने पर भी वह सभी फल प्राप्त कर लेता है। कई लोग नवरात्र के प्रथम दिन और अष्टमी एवम नवमी का व्रत करते हैं। शास्त्रों के अनुसार यह भी मान्य है।
* नवरात्र व्रत देवी (Navratri Puja Vidhi) पूजन, हवन, कुमारी पूजन और ब्राह्मण भोजन से ही पूरा होता है।
No comments:
Post a Comment